एक लेख और एक पत्र लेखक के बारे में | एक लेख और एक पत्र पाठ का सारांश | एक लेख और एक पत्र Subjective Question
एक लेख और एक पत्र लेखक के बारे मे
भगत सिंह पंजाब के एक संपन्न किसान परिवार से थे। लेकिन संपन्नता के मद में खोने की बजाय उन्होंने अपनी पिछली पीढ़ियों से देश प्रेम की भावना को आत्मसात किया। देश की गुलामी उनके लिए ज्यादा बेचैन करने वाली स्थिति थी, बजाय व्यक्तिगत जीवन में नौकरी या आरामशुदा दिनचर्या के। उन्होंने क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया, लोगों को जागरूक करने के लिए वैचारिक लेख लिखे, संगठन बनाये तथा एक सक्रिय कार्यकर्ता की तरह जेल गये। हँसते-हँसते फाँसी पर झूल गये। उनकी यह कुर्वानी भारतीय मानस को झकझोरने वाली रही और यह देश आगे चलकर आजाद हो सका। यह सच्ची देशसेवा ही थी, जिसे उन्होंने अपने को होम कर के संपन्न किया था।
एक लेख और एक पत्र पाठ का सारांश
भगत सिंह का समय आजादी के संघर्ष का समय था। इस संघर्ष में नौजवानों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। यहाँ संकलित उनके लेख से यह स्पष्ट होता है कि देश की आजादी के लिए ऐसे देशसेवकों की जरूरत है जो तन-मन-धन अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश के लिए न्यौछावर कर दें। यह त्यागमय कार्य घर-परिवार में उलझे पारिवारिक लोगों से संभव नहीं था। विद्यार्थी चूँकि पारिवारिक जंजालों से मुक्त होते हैं, अंतः उनकी राजनीतिक सक्रियता उस समय देश के लिए आवश्यक थी। भगत सिंह इसीलिए उन्हें किताबी दुनिया से निकलकर राजनीति में भाग लेने को प्रेरित करते हैं। वे अपने क्रांतिकारी साथी सुखदेव को लिखे पत्र में बताते हैं कि विपत्तियाँ तो व्यक्ति को पूर्ण बनाती हैं। उनसे बचने के लिए आत्महत्या का रास्ता कायरता है। रूसी क्रांतिकारियों के बंदी जीवन में मौजूद शोषण की प्रतिक्रिया में जो क्रांति हुई, उसने न केवल जारशाही की सत्ता को उलट दिया बल्कि जेल में कैदियों के लिए एक सम्मानपूर्ण परिवेश तैयार कराने की वैचारिक जमीन पैदा की। अतः भारत में क्रांति का नेतृत्व करने वालों को एक सुविचारित एवं सोद्देश्य क्रांति की दिशा निश्चित कर लेनी चाहिए ताकि उसके दूरगामी और बहुआयामी परिणाम हों। सिर्फ विरोध के लिए विरोध विचारहीन होता है और वह समस्त क्रांतिकारी प्रयलों को एक अनिश्चित मौत की तरफ ढकेल देता है। वे बताते हैं कि क्रांति व्यक्तिगत सुख-दुख के लिए न तो शुरू ही की जाती है और न ही समाप्त। इसके आरंभ से अंत तक सामूहिक हित होता है। वे रूसी साहित्य को भी अनुकरणीय मानते हुए बताते हैं कि रूसी साहित्य में जीवन की वास्तविकताओं का चित्रण मिलता है। उनकी यथार्थपरक कहानियों में जीवन के कष्टमय और दुखमय दृश्य पाठक के हृदय में एक आत्मबल पैदा करते हैं। उन कहानियों के महान, उन्मादी और असाधारण जुझारू चरित्र पाठक के व्यक्तित्व को ऊँचा उठाते हैं। विपत्तियाँ सहन करने वाले, सहृदय पात्रों की उपस्थिति ही रूसी साहित्य को तत्कालीन भारतीय साहित्य में मौजूद अनावश्यक रहस्यमयता और वायवीयता के समानांतर कहीं ऊँचा स्थापित करती है। एक संघर्षशील राष्ट्र के लिए ऐसा ही क्रांतिदर्शी साहित्य वरेण्य हो सकता है। इस पत्र में विभिन्न व्यावहारिक उदाहरणों, भावपूर्ण संस्मरणों और राजनीतिक प्रतिदर्शों के माध्यम से वे सुखदेव को पुनः संकल्पित होने का आह्वान करते हैं। भगत सिंह एक भविष्यदर्शी राजनीतिक चिंतक और एक कुशल रणनीतिकार थे, यह प्रस्तुत पाठ में उनके विचारों से स्वतः स्पष्ट हो जाता है।
एक लेख और एक पत्र Subjective Question
Q.1. भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएं है?
उत्तर – भगत सिंह की विद्यार्थियों से निम्नलिखित अपेक्षाएं है :-
(क) देश को आजाद करवाने मे तन मन धन से सहयोग करें |
(ख) विद्यार्थी अलग-अलग रहते हुए भी अपने देश के अस्तित्व की रक्षा करें |
(ग) वे पढ़ने के साथ-साथ पॉलिटिक्स का भी ज्ञान रखें और जब जरूरत हो, मैदान मे कूद पड़े |
(घ) वे एक भारी क्रांति के लिए तत्पर रहें |
Q.2. भगत सिंह के अनुसार किस प्रकार की मृत्यु सुंदर है ?
उत्तर – भगत सिंह देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए मृत्युदंड के रूप मे मिलने वाली मृत्यु को सुंदर मानते हैँ | क्योंकि उस मृत्यु मे एक कर्तव्यबोध समाया होगा और वह मृत्यु आगे की पीढ़ी मे आजादी के संघर्ष के लिए जुनून पैदा करेगी | व्यक्तिगत कष्ट और दुखों के चलते आत्महत्या के रास्ते को वे कायरता मानते थे | वे अपने क्रांतिकारी साथी सुखदेव को लिखे पत्र मे बताते हैँ की विपत्तियाँ तो व्यक्ति को पूर्ण बनाती है | उनसे बचने के लिए आत्महत्या का रास्ता कायरता है।
Q.3. भगत सिंह ने अपनी फांसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है ? वे ऐसा समय क्यों चुनते हैँ ?
उत्तर – भगत सिंह ने इच्छा व्यक्त की है की जब देश की आजादी की लड़ाई अपने चरम पर हो, तभी उन्हे फांसी की सजा दी जाय | क्योंकि लड़ाई के चरम पर आंदोलनकारी दल भावनात्मक रूप से बेहद संवेदनशील होते हैँ। एक छोटी-सी चिंगारी भी उन्मे क्रांति का जज्बा भर देने के लिए पर्याप्त होती है | यदि ऐसे समय मे भगत सिंह को फांसी की सजा दी जाय तो आंदोलनकारी दल की भावनात्मक एकता को उभारने मे मदद पहुंचेगी। उनका मानना था की ऐसे समय में दी जाने वाली फांसी की सजा ब्रिटिश हुकूमत के प्रति विरोध और वैमनस्य की ज्वाला को और भड़कायेगी तथा इसका दूरगामी परिणाम आजादी के आंदोलन के पक्ष मे होगा।