बातचीत लेखक के बारे में | बातचीत पाठ का सारांश | बातचीत Subjective Question
बातचीत लेखक के बारे में
बालकृष्ण भट्ट भारतेंदु युग के सर्वाधिक प्रखर विचारकों में थे। हिंदी गध और आलोचना के निर्माण में बालकृष्ण भट्ट की भूमिका महत्वपूर्ण थी। हिंदी प्रदीप्त नामक पत्रिका के माध्यम से उन्होंने विभिन्न सामाजिक ,सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर गंभीर विचारात्मक निबंध लिखें और लिखवायें। इन निबंधों में राष्ट्रीय नवजागरण का केंद्रीय स्वर समाहित था। उन्होंने नितांत व्यक्तिगत और रोजमर्रा के साधारण अनुभव जैसे विषयों को गंभीर चिंतन से पूर्ण कर दिया। नवजागरण और स्वाधीनता संघर्ष के उस दौर में अपने वैचारिक निबंधओं से उन्होंने आधुनिक चेतना का व्यापक प्रसार क्या था।
बातचीत पाठ का सारांश
प्रस्तुत निबंध वर्णनात्मक प्रकृति का है तथा इसमें भाषा और शैली में व्यवहारिकता का ध्यान रखा गया है। पूरा निबंध मोनू पाठक से संवाद कर रहा है। निबंध में बालकृष्ण भट्ट ने अत्यंत सामान्य और रोजमर्रा के विषय `बातचीतʼ को आधार बनाकर वैचारिक जागरूकता लाने की कोशिश की है। निबंधकार ने यूरोप में आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन का उदाहरण देकर बातचीत के महत्व को बताया है। बातचीत में आकर्षण बना रहे इसके लिए यूरोप के लोग अपनी बात में सरस उक्तियों का ध्यान रखते हैं। भट्ट जी का मानना है कि हमारे यहां भी बातचीत की भाषा और उसके लिखित रूप यानी गध की भाषा सरस लोकोक्तियां से पूर्ण और मुहावरेदार होनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि जिस राष्ट्रीय चेतना का संप्रेषण भारतीय जनता में होना चाहिए था वह आमफहम शब्दों को बाकी जैसी सरस विधा में ढ़ालकर संभव थी, भाषणबाजी से नहीं। इसलिए वे रॉबिंसन क्रूसो का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वह तकरीबन 16 वर्षों तक मनुष्य समाज से दूर रहा वह कुत्ते बिल्ली आदि जानवरों के साथ रहता था। एक बार फ्राइडे नामक व्यक्ति के मुख से मनुष्यों जैसी बात सुनकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने भी बोलने की कोशिश की और उसे ज्ञान हुआ कि वह जानवरों से पृथक और बातचीत कर सकता है। अपनी भावनाएं, अपने विचार, आवश्यकताएं, सुख-दुख सब कुछ दूसरों से साझा कर सकता है। अतः अपने भावों को दूसरे की सामने प्रकट करना तथा दूसरों के भाव को समझ लेना बातचीत के माध्यम से ही संभव है। आजादी के संघर्ष भरे दिनों में भारतीय जनता बातचीत के माध्यम से ही परस्पर एक सूत्र हो सकती थी और इसी अर्थ में भट्ट जी के इस निबंध का विशेष महत्व सिद्धांत होता है।
बातचीत VVI SUBJECTIVE QUESTIONS
Q.1. अगर हममे वाक्शक्ति न होती, तो क्या होता ?
उत्तर- यदि हममे वाक्शक्ति नहीं होती तो हम इस गूँगी सृष्टि के बारे मे नहीं जान पाते | सब लोग अपाहिज से कोने मे बिठा दिए गए होते और एक-दूसरे के सूख-दूख का अनुभव हम अपनी दूसरी इंद्रियों के माध्यम से करते | अपने हृदय के भावों और विचारों को न हम दूसरों तक सहजता से पहुँचा पाते, न ही दूसरों की किसी भावना यआ विचार से अवगत हो पाते | एक संवादहीन परिवेश मे प्रत्येक व्यक्ति अजनबीपन का शिकार होता |
Q.2. बातचीत के संबंध मे बेन जॉनसन और एडीसन के क्या विचार हैँ ?
उत्तर- बेन जॉनसन के अनुसार बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है | एडीसन के अनुसार असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ की जब जो आदमी होते हैँ तभी अपना दिल एक-दूसरे के सामने खोलते हैँ | तीसरे आदमी के आ जाने से दो आदमियों मे बातचीत मे जो बाधा आ जाती है | तीसरा आदमी प्रायः उपेक्षित हो जाया करता है।
Q.3. ‘ आर्ट ऑफ कनवरसेशन ‘ क्या है ?
उत्तर- आर्ट ऑफ कनवरसेशन यूरोप के लोगों मे परस्पर बात करने की कला को कहते हैँ | उसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वानमण्डली मे है | इसमे ऐसे चतुराई के प्रसंग होते हैँ जिन्हे सुनकर कानों को अत्यंत सुख मिलता है | यूरोपिय लोगों की बातचीत मे विद्वता का दंभ नहीं होता | बातचीत मे आकर्षण बना रहे इसलिए वहन के लोग अपनी बात मे सरस उक्तियों का ध्यान रखते हैँ | इसी को हिन्दी मे सुहृद गोष्ठी नाम दिया गया है |
Q.4. मनुष्य की बातचीत का उत्तम तरीका क्या हो सकता है ? इसके द्वारा वह कैसे अपने लिए सर्वथा नवीन संसार की रचना कर सकता है ?
उत्तर- मनुष्य के बातचीत का उत्तम तरीका यह है की वह स्वयं से बातचीत करने की कला विकसित करे | यदि वह किसी दूसरे से बात करना चाहेगा तो इसके लिए उसे सामने वाले व्यक्ति के स्वभाव एवं स्थिति के अनुसार अपने को संभालना पड़ेगा | लेकिन यदि वह स्वयं से बात करना सिख लेगा तो मन मे मौजूद संसार भर के विविध रूपों के अपनी निजी समझ से संवाद कर पाएगा | इस तरह वह अवाक् रह कर भी एक आत्मगत संसार की रचना कर सकेगा ,जहां पर्याप्त चिंतन-मनन का अवकाश पाकर वह अपने को वैचारिक रूप से शक्तिवान बना सकेगा।
5. व्याख्या करें।
(क) सच है जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण दोष प्रकट नहीं होता
उत्तर – लेखक ने रॉबिंसन क्रूसो का उदाहरण देते हुए कहा है कि वह तकरीबन 16 वर्षों तक मनुष्य समाज से दूर रहा। वह कुत्ते, बिल्ली आदि जानवरों के साथ रहता था। एक बार फ्राइडे नमक व्यक्तियों के मुख से मनुष्य उचित बात सुनकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने भी वैसे ही बोलने की कोशिश की और उसे ज्ञान हुआ कि जानवरों से पृथक और बातचीत कर सकता है। अपनी भावनाएं, अपने विचार, आवश्यकताएं, सुख-दुख सब कुछ दूसरों से साझा कर सकता है। अतः अपने भाव को दूसरे के सामने प्रकट करना तथा दूसरों के भाव को समझ लेना बातचीत के माध्यम से ही संभव है। अतः यह कहना ठीक है कि जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण दोष प्रकट नहीं होता प्रसिद्ध पश्चिमी विद्वान बेन जॉनसन ने भी कहा है कि ‘बोलने से ही मनुष्य के रूप में साक्षात्कार होता है’।