संपूर्ण क्रांति लेखक के बारे में | संपूर्ण क्रांति पाठ का सारांश | संपूर्ण क्रांति Subjective Question

संपूर्ण क्रांति लेखक के बारे में | संपूर्ण क्रांति पाठ का सारांश | संपूर्ण क्रांति Subjective Question

संपूर्ण क्रांति लेखक के बारे में

जयप्रकाश नारायण भारतीय राजनीति के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं। आजादी से पूर्व उन्होंने स्वाधीनता संघर्ष में एक कुशल नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाई थी। आजादी के बाद उन्होंने सत्तावादी राजनीति की जगह लोकवादी रचनात्मक राजनीति और समाज-सेवा का मार्ग चुना। साठ के दशक में अपनी ईमानदार छवि तथा लोकप्रियता के चलते डाकुओं के हृदयपरिवर्तन तथा पुनर्वास में उनकी खास भूमिका रही। आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकारकी  दमनकारी नीतियों के खिलाफ छात्रों तथा युवाओं में भड़की विरोध भावना को उन्होंने उनके ही अनुरोध पर बीमार रहने के बावजूद नेतृत्व प्रदान किया। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में दिया गया उनका अभिभाषण संपूर्ण क्रांति’ के नाम से समादृत है। यह एक ऐसा अभिभाषण था जिसने सत्ता परिवर्तन तो संभव किया ही, एक लोकतांत्रिक राजनीति के सच्चे आदर्शों और नैतिक मूल्यों का ऐतिहासिक दस्तावेज भी बन गया।

संपूर्ण क्रांति पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ उनके अभिभाषण का संपादित अंश है। इसमें युवाओं तथा छात्रों में राजनीति के उच्चतम आदर्शों और मूल्यों को स्थापित करने की क्षमता है। इसे आदर्श राजनीति का घोषणा-पत्र भी कहा जा सकता है। उन्होंने युवाओं को सचेत किया है कि सुविधाभोगी जीवन और व्यक्तिगत उपलब्धियों के लोभ में राष्ट्रीय चेतना की उपेक्षा आत्मघाती होती है। उनका मानना था कि जबकि तमाम भारतीय शिक्षण संस्थान अंग्रेज सरकार के विज्ञापनों से चलते हैं, वहाँ एक राष्ट्रीय चरित्र की शिक्षा असंभव है। इसलिए वे देश के युवाओं से अपील करते हैं कि वे गरीबी, भूख, अशिक्षा, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं को दूर करने के प्रति जागरूक हों और संगठित होकर आंदोलन के माध्यम से जनता को सरकार की संवेदनहीन नीतियों के खिलाफ जाग्रत करें। उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करें। वे चुनावों में भारी-भरकम खर्च का विरोध करते हैं और मानते हैं कि ये खर्च भ्रष्टाचार और कालाबाजारी को पनपने का अवसर देते हैं इसीलिए वे सत्ता परिवर्तन के लिए बनाई गई संघर्ष-समितियों को सतत सक्रिय रहने की नसीहत देते हैं। वे छात्रों से उम्मीद करते हैं कि चुनाव होने की दशा में ये छात्र व जनसंघर्ष समितियाँ जो दलविहीन होंगी, सर्वसम्मति से उम्मीदवार चुनेंगी। चुनाव जीतने पर भी उक्त उम्मीदवार के भावी कार्यक्रमों का भी संघर्ष समितियाँ निरीक्षण करेंगी तथा पथभ्रष्ट होने पर ऐसे उम्मीदवार को इस्तीफा देने को बाध्य करेंगी। इनके अलावा ये समितियाँ केवल शासन की गलत नीतियों का ही विरोध करने तक सीमित न रहकर, गाँवों में छोटे अफसरों, बाबुओं और पुलिस आदि की घूसखोरी के खिलाफ भी संघर्ष करेंगी। बड़ किसानों द्वारा छोटे किसानों के उत्पीड़न को भी रोकेंगी। इस तरह प्रस्तुत पाठ भारतीय राजनीति का एक आवश्यक एवं मानवोचित चेहरा सामने रखता है।

 

संपूर्ण क्रांति VVI SUBJECTIVE QUESTIONS

Q.1. आंदोलन के नेतृत्व के संबंध मे जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे, आंदोलन का नेतृत्व वे किस शर्त पर स्वीकार करते हैँ ?

उत्तर – आंदोलन के नेतृत्व के संबंध मे जयप्रकाश नारायण का विचार था की देश के युवा आंदोलन का संचालन करे, हम उनका मार्गदर्शन करेंगे | वे (युवा) देश से गरीबी, भूख, अशिक्षा, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं को दूर करने के प्रति वैचारिक जागरूकता तथा संगठनात्मक भावना का विकास जनता मे आंदोलन के माध्यम से करे तथा उन्हे सरकार की संवेदनहीन नीतियों के खिलाफ जागरूक करे | आंदोलन के नेतृत्व के लिए उनकी शर्त थी की वह केवल नाम के लिए नेता नहीं बनेंगे | यदि कोई उन्हे सामने खड़ा करके अपने अनुसार काम कराने के लिए डिक्टेट करे तो वे नेतृत्व नहीं करना चाहेंगे | आंदोलन के नेतृत्वकर्ता के रूप मे वे पूर्ण वैचारिक तथा निर्णयगत स्वतंत्रता चाहते थे।

 

Q.2. जयप्रकाश नारायण के छात्र जीवन और अमेरिका प्रवास का परिचय दें | इस अवधि की कौन सी बात आपको प्रभावित करती है ?

उत्तर – छात्र जीवन मे ही जयप्रकाश नारायण ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन मे अपने मित्रों के साथ भाग लिया था जिससे पटना साइंस कॉलेज से उनकी आई. एससी.  की पढ़ाई बाधित हुई | बाद मे उन्होंने बिहार विद्यापीठ से वह परीक्षा पास की | आगे की पढ़ाई के लिए हिन्दू विश्वविद्यालय ,बनारस मे पूरी सहजता के बावजूद उन्होंने वहाँ पढ़ने से इनकार कर दिया | उनका मानना था की उक्त विश्वविद्यालय अंग्रेज सरकार के मदद से चलता है | अतः वहाँ एक राष्ट्रीय चरित्र की शिक्षा असंमभव है | वे अमेरिका मे शिक्षा ग्रहण करने गये | वहाँ भीषण आर्थिक कठिनाईयों मे उन्होंने बागान मे, लोहे के कारखानों मे, कशाई बारों मे मजदूरी की | होटल और रेस्त्रां मे उन्होंने वेटर के साथ-साथ बर्तन धोने का काम किया | इतनी कठिन स्तिथियों का सामना करते हुए उन्होंने अमेरिका से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की | यही बात हमे ज्यादा प्रभावित करती है की छात्र जीवन से ही उनके अंदर राष्ट्रीय भावना इतनी प्रबल थी की उन्होंने अंग्रेज नीति से प्रभावित शिक्षा आराम से ग्रहण करने के बजाय इतनी कठिनाईयों से पढ़ाई करना स्वीकार किया।

 

Q.3. जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी मे क्यों नहीं शामिल हुए ?

उत्तर – तत्कालीन भारत अंग्रेजों का गुलाम था | पूरे देश मे स्वतंत्रता आंदोलन की कम या ज्यादा लहर थी | तत्कालीन कम्युनिस्ट पार्टी इस आंदोलन से अपने को अलग रखे हुई थी | जब की जयप्रकाश नारायण लेनिन की इस मान्यता से सहमत थे की यदि देश मे आजादी चल रही हो ,भले ही इस लड़ाई का नेतृत्व पूंजीवादी शक्तियों के हाथ मे फिर भी कम्युनिस्ट समूह को अपने को इससे अलग नहीं रखना चाहिए | जयप्रकाश नारायण के लिए कम्युनिस्ट सिद्धान्तपालन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण सवाल उस समय भारत की आजादी का था | अतः वे कम्युनिस्ट पार्टी मे शामिल ना होकर काँग्रेस मे शामिल हुए।

 

Q.4. बापू और नेहरू की किस विशेषता का उल्लेख जेपी ने अपने भाषा मे किया है ?

उत्तर – बापू और नेहरू क्रमशः लोकप्रिय राष्ट्रीय नेता और सत्तासीन व्यक्तित्व होने के बावजूद अपने विरोधियों के प्रति वैमनस्य नहीं पालते थे | जयप्रकाश नारायण गांधीजी की विशेषता बताते हुए कहते हैँ की अपने सामने विरोध कर देने के बावजूद वे सहज रहते थे | बाद मे विरोधी को एकांत मे प्रेमपूर्वक समझाते थे | इसी तरह नेहरू जी भी परराष्ट्र नीतियों से जयप्रकाश जी के विरोध के बावजूद उनके प्रति भ्रातृत्व स्नेह ही रखते थे।

 

Q.5. दिनकर जी का निधन कहाँ और किन परिस्थितियों मे हुआ था ?

उत्तर – जयप्रकाश जी वेल्लोर अस्पताल जाते समय अपने मित्र ईश्वर अय्यर के साथ मद्रास मे रुके हुए थे | वहीं उनकी मुलाकात दिनकर जी से हुई थी | दिनकर जी ने देश की राजनीति दुर्दशा पर गहरी चिंता जताई थी | कुछ महत्त्वपूर्ण कविताएं भी उन्हे सुनाई थी | उसी रात वापस जाने पर उन्हे दिल का दौरा पड़ा और विलिंगडन नर्सिंग होम मे काफी प्रयास के बावजूद उन्हे बचाया न जा सका।

 

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