सिपाही की माँ लेखक के बारे में | सिपाही की माँ पाठ का सारांश | सिपाही की माँ Subjective Question

सिपाही की माँ लेखक के बारे में | सिपाही की माँ पाठ का सारांश | सिपाही की माँ Subjective Question

सिपाही की माँ लेखक के बारे में

बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध में हिन्दी नाटकों में नई स्फूर्ति और चेतना के प्रस्तावक रहे। मोहन राकेश । वे सिर्फ कथाकार और नाटककार थे, रंगनिर्देशक नहीं। लेकिन उनके नाटकों के संरचना वस्तुनिष्ठ, संश्लिष्ट और रंगमंचीय निर्देशों से अनायास ही युक्त रहती थी। यही कारण था कि आधुनिक रंगमंच मोहन राकेश को ही अपना प्रेरणा-पुरुष मानता है। यूरोप में उन्नीसर्व शती में आरंभ हुए आधुनिक नाटक तथा रंग परंपरा का सार्थक विकास मोहन राकेश के हिट नाटकों में दिखाई देता है। एकांकी एक ही अंक में प्रस्तुत नाट्य संरचना होती है। इसमें पात्र तथा दृश्य अपेक्षाकृत कम होते हैं।

सिपाही की माँ पाठ का सारांश

प्रस्तुत एकांकी में विशनी (माँ), मानक (पुत्र) और मुन्नी (पुत्री) नामक केन्द्रीय पात्रों के माध्यम से निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक, सामाजिक तथा मानसिक जटिलताओं को विमर्श के दायरे में लाने की रचनात्मक पहल मोहन राकेश ने की है। एक परंपरागत निम्न मध्यवर्गीय परिवार की जिम्मेदारियाँ और स्वप्न भी सामान्य होते हैं। मसलन घर की रोजी-रोटी का जुगाड़, बेटे की नौकरी, बेटी का ब्याह आदि । हालाँकि गरीबी इस सामान्य से सपने को भी एक भयावह प्रश्नचिह्न के रूप में इस वर्ग के सामने खड़ा कर देती है। मुन्नी जो अभी मात्र 14 वर्ष की है, का विवाह भी विशनी को लड़ाई से कम नहीं लगता। क्योंकि विवाह के लिए दहेज चाहिए, दहेज की व्यवस्था उसका एकमात्र पुत्र कर सकता है जो लड़ाई पर बर्मा गया है। पिछले सात महीने से उसकी सलामती की कोई सूचना नहीं है। लेकिन माँ और पुत्री तमाम आशंकाओं और अनिश्चित से भविष्य के बीच उसके आने की प्रतीक्षा करती हैं। मुन्नी की मासूम कामनाओं और क्रूरतम यथार्थ के द्वन्द्व से पैदा विडंबनाबोध के बीच एकांकीकार ने एक व्यापक बहस की गुंजाइश पैदा कर दी है। सत्ता और आम जनता की प्राथमिकताएँ युद्ध और पारिवारिक आकांक्षाओं और दायित्वों के प्रत्यय में पाठक को बेचैन कर देती हैं। रचना का धुंधला सा अंत एक हूक सी पैदा कर जाता है। तकनीकि दृष्टि से देखें तो यह एकांकीकार की शिल्पगत कुशलता ही है कि अत्यल्प रंगनिर्देशों के प्रयोग से उन्होंने एकांकी को पठनीय और मंचनीय, दोनों बना दिया है।

सिपाही की माँ Subjective Question 

Q.1. विशनी और मुन्नी को किसकी

प्रतीक्षा है, वे डाकिए की राह क्यों देखती है ?

उत्तर – विशनी और मुन्नी को मानक की प्रतीक्षा है जो अंग्रेज सरकार की तरफ से बर्मा मे युद्ध पर गया है | वे डाकिए की राह मानक की चिठ्ठी आने की आशा में देखती है | मानक पहले हर पंद्रह दिन पर चिट्ठियाँ लिखा करता था, लेकिन बर्मा की लड़ाई पर गए सात महीने बाद भी उसकी कोई चिट्ठी नहीं आयी है।

 

Q.2. विशनी मानक को लड़ाई में क्यों भेजती है ?

उत्तर – विशनी घर की आर्थिक दूरावस्था के चलते इकलौते बेटे मानक को लड़ाई पर भेजती है | वह मुन्नी के विवाह के लिए आवश्यक घर एकत्र करने के उद्देश्य से ही बेटे को लड़ाई पर भेजती है।

 

Q.3. एकांकी और नाटक मे क्या अंतर है?  संक्षेप में बताइए।

उत्तर – एकांकी एक ही अंक मे प्रस्तुत नाट्य संरचना होती है | इसमे पात्र अपेक्षाकृत कम होते हैँ | नाटक कई अंकों से मिलकर बनता है | इसमे पात्र, संवाद तथा दृश्यों की बहुलता होती है।

 

Q.4. आपके विचार से इस एकांकी का सबसे सशक्त पात्र कौन है, और क्यों ?

उत्तर – मेरे विचार से इस एकांकी की सबसे सशक्त पात्र मानक की माँ विशनी है जो भयानक गरीबी मे भी हिम्मत से अपनी संतानों का पालन करती है | इकलौते पुत्र को युद्ध पर भेजती है | लड़ाई से पुत्र के लौटने या ना लौटने की असमंजसपूर्ण और पीड़ादायक मनःस्थिति मे भी हिम्मत बनाए रखती है ,दूसरों के सामने कमजोर नहीं दिखती है और अपनी पुत्री मुन्नी की मासूम इच्छाओं को भी संबल प्रदान किए रहती है।

 

Q.5. दोनों लड़कियां कौन है ?

उत्तर – दोनों लड़कियां बर्मा के युद्ध से भाग कर आई शरणार्थी है | वे विशनी के गाँव के पास शरणार्थी महिलाओं के साथ रह रही है और गाँव के लोगों से मांग कर गुजारा कर रही है | उन्ही के माध्यम से विशनी को बर्मा के युद्ध की विभीषिका का पता चलता है।

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