शिक्षा और संस्कृति | 10th Hindi Bihar Board | Bseb 10th Bihar Board

(1). गांधीजी का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तर : गुजरात के पोरबंदर में।

(2). गाँधीजी के माता-पिता का नाम क्या था?

उत्तर : गाँधीजी की माता का नाम पुतलीबाई तथा पिता का नाम करमचंद गाँधी था।

(3). गाँधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा का पहला प्रयोग कहाँ किया था?

उत्तर दक्षिण अफ्रीका में।

(4). गांधीजी को सर्वप्रथम महात्मा किसने कहा था ?

उत्तर : रवींद्रनाथ टैगोर ने।

(5). हिंद स्वराज की रचना किसने की ?

उत्तर: महात्मा गाँधी ने।

(6). ‘हरिजन’ और ‘यंग इंडिया’ पत्रिका संपादन किसने किया है ?

उत्तर : महात्मा गाँधी ने।

(7). आध्यात्मिक शिक्षा से गाँधीजी का मतलब किस शिक्षा से है?

उत्तर हृदय की शिक्षा से ।

(8). कोई संस्कृति कब जिन्दा नहीं रह सकती ?

उत्तर : जब वह दूसरों का बहिष्कार करने की कोशिश करती है।

(9). गाँधीजी ने जीवन संग्राम में प्रेम को किस चीज़ से जीतने के लिए कहा है?

उत्तर : प्रेम से।

(1). गाँधीजी बढ़िया शिक्षा किसे कहते हैं ?

उत्तर : गाँधीजी बढ़िया शिक्षा अहिंसक प्रतिरोध को कहते हैं। ये कहते हैं कि इस शिक्षा का ज्ञान बच्चों को मिलनेवाली साधारण अक्षर ज्ञान की शिक्षा के बाद नहीं अपितु पहले सिखानी चाहिए। वे कहते हैं कि बच्चे को वर्णमाला लिखने और सांसारिक ज्ञान देने के पहले यह सिखाना चाहिए कि आत्मा क्या है, सत्य क्या है, प्रेम क्या है और आत्मा में क्या क्या शक्तियाँ छुपी हुई हैं। शिक्षा का जरूरी अंग यह होना चाहिए कि बालक जीवन संग्राम में प्रेम से घृणा को, सत्य से असत्य को और कष्ट सहन से हिंसा को आसानी के साथ जीतना सीखे।

 

(2). इंद्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग सीखना क्यों जरूरी है ?

उत्तर : इन्द्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग सीखना इसलिए जरूरी है कि उससे बुद्धि का विकास जल्द से जल्द और उत्तम तरीके से हो जाता है।

 

(3). शिक्षा का अभिप्राय गाँधीजी क्या मानते हैं?

उत्तर : शिक्षा से गाँधीजी का अभिप्राय यह है कि बच्चे और मनुष्य के शरीर, बुद्धि और आत्मा के सभी उत्तम गुणों को प्रकट किया जाए। वे कहते हैं कि पढ़ना लिखना शिक्षा का अंत तो है ही नहीं, शुरू भी नहीं है। वह मानव को शिक्षा देने के साधनों में से केवल एक है। साक्षरता स्वयं कोई शिक्षा नहीं है। उनका कहना है कि जिस समय से बच्चा पढ़ना-लिखना शुरू करता है उसी समय से वह उत्पादन का काम करने योग्य बन जाए। उसे पढ़ाई के साथ-साथ दस्तकारी इत्यादि भी सिखाई जाए।

 

(4). मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास कैसे संभव है ?

उत्तर : जब बच्चों को साधारण शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा दी जाएगी, तब मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास सम्भव हो सकता है। ये कहते हैं कि उनकी इच्छा है, सारी शिक्षा किसी दस्तकारी या उद्योगों के द्वारा दी जाए। वे कहते हैं कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरूस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों।

 

(5). गाँधीजी कताई और धुनाई जैसे ग्रामोद्योगों द्वारा सामाजिक क्रांति कैसे संभव मानते थे ?

उत्तर: गाँधीजी को कताई और धुनाई जैसे ग्रामोद्योगों द्वारा सामाजिक क्रांति का दूरगामी परिणाम नजर आता था। उन्हें लगता था, इससे नगर और ग्राम के संबंधों का एक स्वास्थ्यप्रद और नैतिक आधार प्राप्त होगा और समाज की मौजूदा आरक्षित व्यवस्था और वर्गों के परस्पर विषाक्त संबंधों की कुछ बड़ी से बड़ी बुराइयों को दूर करने में बहुत सहायता मिलेगी। इससे गाँवों का हास रुक जाएगा और एक दिन ऐसी न्यायपूर्ण व्यवस्था की बुनियाद पड़ेगी जिसमें अमीर-गरीब का अप्राकृतिक भेद न हो और हर एक के लिए गुजर के लायक कमाई होगी। यह सब किसी भयंकर रक्तरंजित वर्गयुद्ध अथवा बहुत भारी पूँजी के व्यय के बिना भी हो जाएगा।

 

(6). शिक्षा का ध्येय गाँधीजी क्या मानते थे ?

उत्तर : शिक्षा का ध्येय गाँधीजी ‘चरित्र निर्माण’ मानते थे। वे मानते थे कि साहस, यल, सदाचार और बड़े लक्ष्य के लिए काम करने में आत्मोत्सर्ग की शक्ति का विकास साक्षरता से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। किताबी ज्ञान तो उस बड़े उद्देश्य का एक साधनमात्र है। उनका ख्याल था कि व्यक्ति का चरित्र निर्माण हो जाएगा तो समाज अपना काम आप सँभाल लेगा।

 

(7). गाँधीजी देशी भाषाओं में बड़े पैमाने पर अनुवाद कार्य क्यों आवश्यक मानते थे?

उत्तर : गाँधीजी देशी भाषाओं में बड़े पैमाने पर अनुवाद कार्य इसलिए आवश्यक मानते थे कि इससे संसार की अन्य भाषाओं में जो ज्ञान भंडार भरा पड़ा है, उसे राष्ट्र अपनी ही देशी भाषाओं के द्वारा प्राप्त करे। उनका मानना था कि देश के हर व्यक्ति को कई भाषाओं में छिपे ज्ञान को जानने के लिए उसका सीखना जरूरी नहीं है बल्कि उसका ज्ञान उसके अपनी भाषा में किए अनुवाद से ही प्राप्त हो सकता है। उनका यह भी मानना था कि विद्यार्थियों का एक अलग वर्ग हो जो यह काम करे कि संसार की अन्य भाषाओं की खूबियों को अपनी भाषा में अनुवाद कर दे। इससे अतिरिक्त खर्च भी बचेगा और ज्ञान का लाभ भी मिलेगा।

 

(8). दूसरी संस्कृति से पहले अपनी संस्कृति की गहरी समझ क्यों जरूरी है?

उत्तर: दूसरी संस्कृति से पहले अपनी संस्कृति की गहरी समझ इसलिए जरूरी है कि कोई भी संस्कृति इतने रन भंडार से पड़ी हुई नहीं है जितनी अपनी संस्कृति । हम इतने दिन गुलाम रहे हैं इसलिए अपनी संस्कृति तुच्छ समझना सिखाया गया है, हमने अपनी संस्कृति के अनुसार जीना छोड़ दिया है फिर उसकी खूबियों को हम कैसे जान सकते हैं। हमारा धर्म है कि स्वयं अपनी संस्कृति को हृदयांकित करके उसके अनुसार आचरण किया जाए क्योंकि वैसा न किया गया तो उसका परिणाम सामाजिक आत्महत्या होगा।

 

(9). अपनी संस्कृति और मातृभाषा की दुनियाद पर दूसरी संस्कृतियों और भाषाओं से सम्पर्क क्यों बनाया जाना चाहिए? गाँधीजी की राय स्पष्ट करें।

उत्तर : अपनी संस्कृति और मातृभाषा की बुनियाद पर दूसरी संस्कृतियों और भाषाओं से सम्पर्क बनाया जाना चाहिए। इस संबंध में गाँधीजी की राय यह है कि हमारी संस्कृति जैसी अच्छी संस्कृति किसी और की संस्कृति है ही नहीं। हमारी गुलामी ने हमें अपनी संस्कृति से विमुख कर दिया है। अपनी मातृभाषा में हर भाषा के ज्ञान को हम उसके अनुवाद से जान सकते हैं। इससे कुछ आदमी अगर दूसरी भाषा को जानेंगे तो उसका लाभ हमारे बहुत-से देश वासियों को मिलेगा।

 

(10). गौंपीजी किस तरह के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं और क्यों ?

उत्तर : गाँधीजी अपनी संस्कृति से भिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं। भारतीय संस्कृति उन भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य का प्रतीक है जिनके हिन्दुस्तान में पैर जम गए हैं, जिनका भारतीय जीवन पर प्रभाव पड़ चुका है और जो स्वयं भी भारतीय जीवन से प्रभावित हुई हैं। यह सामंजस्य कुदरती तौर पर स्वदेशी ढंग का होगा, जिसमें प्रत्येक संस्कृति के लिए अपना उचित स्थान सुरक्षित होगा।

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